France Foreign Imams : Islamic fundamentalism पर लगाम लगाने के लिए France की Government ने एक और अहम फैसला किया है. हिजाब पर बैन लगाने के बाद अब विदेशी इमामों की नियुक्ति पर भी रोक लगा दी है.
France Bans : France में बढ़ते कट्टरवाद और चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के प्रशासन ने विदेशी इमामों की देश में एंट्री पर रोक लगा दी है।
France के आंतरिक मंत्री गेराल्ड डर्मैनिन ने घोषणा की है, कि विदेश से भुगतान पाने वाले विदेशी इमामों को इस साल 1 जनवरी से फ्रांस में प्रवेश करने से रोक दिया गया है, और देश स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित इमामों की संख्या बढ़ाना चाहता है।
फ्रांसीसी ब्रॉडकास्टर बीएफएमटीवी ने यह भी नोट किया है, कि 1 अप्रैल 2024 के बाद देश में पहले से मौजूद विदेशी इमाम अपनी आव्रजन स्थिति की मौजूदा शर्तों के तहत नहीं रह पाएंगे। यानि, विदेशी इमामों को फ्रांस छोड़कर जाना होगा।
France में Foreign Imams की Entry पर रोक
France Government के इस फैसले के बाद देश में रह रहे करीब 300 इमामों को एक अप्रैल से पहले फ्रांस से निकलना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, ये इमाम मुख्य रूप से अल्जीरिया, तुर्की और मोरक्को से आए हैं। नई नीति की घोषणा, तुर्की और अल्जीरिया को भेजी गई है।
हालांकि, नई नीति में ये प्रावधान भी किया गया है, कि अगर कोई विदेशी इमाम, फ्रांस में रहना चाहता है, तो वो विदेशों से फंड नहीं ले सकता है और अगर वो फ्रांसीसी मुस्लिम संगठनों से फंड लेकर फ्रांस में रहे, तभी वो देश में रह सकता है।
फ्रांस सरकार ने कहा है, कि उसकी नीति का मकसद यह तय करना है, कि फ्रांस में रहने वाले इमाम विदेशी फंडों और विदेशी वित्त से प्रभावित तो नहीं हो रहे हैं। हालांकि, ‘रमज़ान के इमामों’ के लिए भी एक अपवाद बनाया जाएगा, लगभग 300 इमामों का एक समूह जो हर साल विशेष रूप से इस्लामी पवित्र महीने के लिए फ्रांस की यात्रा करते हैं।
Islamic Fundamentalism से बचाने की कवायद
अक्टूबर 2020 में फ्रांस के सेंट-लेगर-डी-फौगेरेट में यूरोपीय सामाजिक विज्ञान संस्थान में छात्रों को पहले से ही कुरान की शिक्षा दी जा रही है. बता दें कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने पहली बार फरवरी 2020 के भाषण में इस पहल का प्रस्ताव रखा था उनका मानना था कि फ्रांस को किसी भी कीमत पर अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को सजों कर रखना है. दरअल चरमपंथी, फ्रांस को कमजोर करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. मैक्रॉन की उस पहल 1977 में बनाए गए कार्यक्रम पर कड़ी चोट के तौर पर देखा गया. उस व्यवस्था में कई मुस्लिम बहुसंख्यक देशों को सांस्कृतिक और भाषा पाठ्यक्रमों के लिए इमामों को फ्रांस भेजने की इजाजत दी थी. हालांकि ये फ्रेंच सरकार की निगरानी से बाहर होते थे. मैक्रॉन का तर्क है कि विदेशी सरकारों द्वारा वित्त पोषित इमाम उस चीज को बढ़ावा दे सकते हैं जो इस्लामी अलगाववाद की शक्ल में है. हालांकि आलोचक उनके तर्क से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका मानना है कि राजनीतिक नियुक्तियों से भरे इस निकाय में मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधि नहीं होगा.