Gyanvapi Mosque : इलाहबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दे दी। इससे पहले वाराणसी हाईकोर्ट ने सर्वे की मंजूरी देते हुए आदेश में एएसआई को ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण, खुदाई, डेटिंग पद्धति और वर्तमान संरचना की अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच करने का निर्देश दिया गया है।
वाराणसी कोर्ट के बाद अब इलाहबाद हाईकोर्ट ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दे दी है। इलाहबाद हाईकोर्ट में सर्वे को मुस्लिम पक्ष की तरफ से चुनौती दी गई थी। हालांकि, कोर्ट ने वाराणसी अदालत का फैसला बरकरार रखा।
इससे पहले वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी में सर्वे जारी रखने का फैसला सुनाया था। तब इस आदेश को हिंदू पक्ष द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर सुनाया गया था। इसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने वजुखाना को छोड़कर पूरे परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दी, क्योंकि क्षेत्र को सील कर दिया गया।
हिंदू पक्ष की याचिका के आधार पर ज्ञानवापी परिसर का सामान्य सर्वे हुआ था। अब इसका वैज्ञानिक सर्वे किया जाएगा। इस बीच जानना जरुरी है कि ज्ञानवापी मामले में अभी क्या हुआ है? वैज्ञानिक सर्वेक्षण कब से किया जाएगा? यह क्या पता लगाएगा? कार्बन डेटिंग क्या होती है?
ज्ञानवापी मामले में वाराणसी कोर्ट में क्या हुआ था?
वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मां श्रृंगार गौरी मूल वाद में ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से रडार तकनीक से सर्वे कराने के आवेदन को मंजूरी दी थी। इसके साथ ही अब सील परिसर को छोड़कर बाकी सभी स्थानों का सर्वे शुरू कराया गया।
अदालत में हिंदू पक्ष की वादिनियों की तरफ से 16 मई 2023 को प्रार्थना पत्र दिया गया था। कहा गया था कि ज्ञानवापी में सील किए गए वजूखाना को छोड़कर बाकी क्षेत्र का एएसआई से रडार तकनीक से सर्वे कराया जाए। इस पर 19 मई को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने आपत्ति की थी। मुस्लिम पक्ष इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया था, जहां से उसे इलाहबाद हाईकोर्ट जाने के लिए कहा गया। हालांकि, इस दौरान एएसआई के सर्वे पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया गया। अब इलाहबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की सर्वे रोकने की याचिका खारिज कर दी है।
वैज्ञानिक सर्वेक्षण कब से किया जाएगा?
वाराणसी कोर्ट के आदेश के तहत एएसआई ने वैज्ञानिक सर्वेक्षण सुबह आठ से 12 बजे के बीच किया जाएगा और स्पष्ट किया कि नमाज पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा और मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। इसके अलावा सर्वेक्षण की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि चार अगस्त से पहले उसे एक रिपोर्ट सौंपी जानी चाहिए। अगली सुनवाई चार अगस्त को होगी।
वैज्ञानिक सर्वेक्षण क्या पता लगाएगा?
एएसआई के निदेशक को ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण, खुदाई, डेटिंग पद्धति और वर्तमान संरचना की अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच करने का निर्देश दिया गया है। एएसआई द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण में यह पता लगाया जाएगा कि क्या वर्तमान संरचना का निर्माण एक हिंदू मंदिर की पूर्व-मौजूदा संरचना के ऊपर किया गया था? एएसआई संरचना के तीन गुंबदों के ठीक नीचे ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण करेगी और यदि जरूरत पड़ी तो खुदाई भी की जा सकती है।
एएसआई वैज्ञानिक तरीकों से इमारत की पश्चिमी दीवार की उम्र और निर्माण की प्रकृति की जांच करेगी। आदेश में सभी तहखानों की जमीन के नीचे जीपीआर सर्वेक्षण करने और यदि आवश्यक हो तो खुदाई करने का भी जिक्र है।
एएसआई संरचना में पाए गए सभी कलाकृतियों की एक सूची तैयार करेगा, जिसमें उनकी सामग्री को पता लगा जाएगा जाएगा और वैज्ञानिक जांच की जाएगी और निर्माण की उम्र और प्रकृति का पता लगाने के लिए डेटिंग डेटिंग की जाएगी। हालांकि, आदेश में कहा गया है कि एएसआई निदेशक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विवादित भूमि पर खड़ी संरचना को कोई नुकसान न हो और यह बरकरार रहे।
किन सवालों के जवाब मिल सकते हैं?
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि देश की जनता को ज्ञानवापी से जुड़े इन सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं। ज्ञानवापी में मिली शिवलिंगनुमा आकृति कितनी प्राचीन है? शिवलिंग स्वयंभू है या कहीं और से लाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी? विवादित स्थल की वास्तविकता क्या है? विवादित स्थल के नीचे जमीन में क्या सच दबा हुआ है? मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर तीन कथित गुंबद कब बनाए गए? तीनों कथित गुंबद कितने पुराने हैं?
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग उस विधि का नाम है जिसका इस्तेमाल कर के किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है। कार्बन डेटिंग के विधि की खोज 1949 में अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने की थी। इस विधि के माध्यम से लकड़ी, बीजाणु, चमड़ी, बाल, कंकाल आदि की आयु पता की जा सकती है। यानी की ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, उनकी करीब-करीब आयु इस विधि के माध्यम से पता की जा सकती है। इसी कारण वादी पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे में कार्बन डेटिंग या किसी अन्य आधुनिक विधि से जांच की मांग की थी।